दिल्ली-NCR जैसे बड़े महानगरों में आवारा कुत्तों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है। यह विषय अब एक गंभीर सामाजिक और प्रशासनिक मुद्दा बन गया है। जहां कुछ लोग इन कुत्तों को मानवता और जीव अधिकारों के नजरिए से देखते हैं, वहीं अन्य लोग इन्हें सार्वजनिक सुरक्षा और स्वच्छता के लिहाज से एक चुनौती मानते हैं।
हटाने के पक्ष में तर्क:
- सुरक्षा का सवाल: आए दिन बच्चों और बुज़ुर्गों पर कुत्तों के हमले की खबरें सामने आती हैं। इससे आम नागरिकों में डर बना रहता है।
- बीमारियों का खतरा: आवारा कुत्ते कई बार रेबीज जैसी बीमारियों के वाहक बनते हैं, जिससे स्वास्थ्य संबंधी खतरे बढ़ जाते हैं।
- यातायात में बाधा: सड़कों पर घूमते कुत्ते कई बार एक्सीडेंट का कारण बनते हैं।
न हटाने के पक्ष में तर्क:
- जीवों के अधिकार: जानवरों को भी जीवन जीने का अधिकार है। उन्हें हटाना या मारना अमानवीय माना जा सकता है।
- स्थायी समाधान नहीं: कुत्तों को हटाने से समस्या पूरी तरह खत्म नहीं होगी। अगर मूल कारण, जैसे कचरे का ढेर और प्रजनन नियंत्रण, नहीं सुलझाए गए तो समस्या फिर से खड़ी हो सकती है।
- समाज की भूमिका: कई लोग इन कुत्तों को खाना खिलाते हैं और उन्हें समुदाय का हिस्सा मानते हैं। इससे एक भावनात्मक जुड़ाव भी होता है।
समाधान क्या हो सकता है?
सड़कों से आवारा कुत्तों को पूरी तरह हटाने की बजाय संतुलित उपाय अपनाने की ज़रूरत है। उदाहरण के तौर पर:
- नसबंदी अभियान तेज किया जाए
- कचरा प्रबंधन सुधारा जाए ताकि कुत्तों को खाने की चीजें न मिलें
- शेल्टर होम बनाए जाएं जहां कुत्तों की देखभाल हो सके
निष्कर्ष:
दिल्ली-NCR में आवारा कुत्तों की समस्या को लेकर दोनों पक्षों के अपने तर्क हैं। लेकिन एक जिम्मेदार समाज के रूप में हमें ऐसा समाधान तलाशना चाहिए जिसमें इंसान और जानवर दोनों की भलाई सुनिश्चित हो सके।